Poem On Holi In Hindi :- होली ऐसा रंग-बिरंगा त्योहार है, जिसे लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते रहे हैं, होली के दिन सभी बैर-भाव भूलकर एक-दसरे से परस्पर गले मिलते थे. लेकिन सामाजिक भाईचारे और आपसी प्रेम और मेलजोल का होली का यह त्यौहार भी अब बदलाव का दौर देख रहा है. फाल्गुन की मस्ती का नजारा अब गुजरे जमाने की बात हो गई है. कुछ सालों से फीके पड़ते होली के रंग अब उदास कर रहे हैं.
शहर के बुजुर्गों का कहना है कि न हंसी- ठिठोली, न हुड़दंग, न रंग, न ढप और न भंग’ ऐसा क्या फाल्गुन? न पानी से भरी “खेळी’ और न ही होली का शोर. अब कुछ नहीं , कुछ घंटों के रंग-गुलाल के बाद सब कुछ शांत. होली की मस्ती में अब वो रंग नहीं रहे. आओ राघे खेला फाग होली आई.ताँबा पीतल का मटका भरवा दो..सोना रुपाली लाओ पिचकारी…के स्वर धीमे हो गए हैं. फाल्ुन लगते ही होली का हुड़दंग शुरू हो जाता था.
मंदिरों में भी फाल्गून आते ही फाग’ शुरू हो जाते थे, होली के लोकगीत गुँजते थे. शाम होते ही ढप-चंग के साथ जगह-जगह फाग के गीतों पर पारंपरिक नृत्य की छटा होली के रंग बिखेरती थी. होली खेलते समय पानी की खेली में लोगों को पकडक़र डाल दिया जाता था. कोई नाराजगी नहीं, सब कुछ ख़ुशी-खुशी होता था. वसंत पंचमी से होली की तैयारियाँ करते थे, चौराहे पर समाज के नोहरे व मंदिरों में चंग की थाप के साथ होली के गीत गुँजते थे.
रात को चंग की थाप पर गैर नृत्य का आकर्षण था. बाहर से फाल्गुन के गीत व रसिया गाने वाले रात में होली की मस्ती में गैर नृत्य करते थे. पहले की होली और आज की होली में अंतर आ गया है, कुछ साल पहले होली के पर्व को लेकर लोगों को उमंग रहती थी, आपस में प्रेम था. द्वेष भाव नहीं था. आपस में मिल कर लोग प्रेम से होली खेलते थे. मनोरंजन के अन्य साधनों के चलते लोगों की परंपरागत लोक त्योहारों के प्रति रुचि कम हुई है. इसका कारण लोगों के पास समय कम होना है. होली आने में महज कुछ ही दिन शेष हैं, लेकिन शहर में होली के रंग कहीं नजर नहीं आ रहे हैं.
एक माह तो दूर रहा अब तो होली की मस्ती एक-दो दिन भी नहीं रही. मात्र आधे दिन में यह त्योहार सिमट गया है. रंग-गुलाल लगाया और हो गई होली. जैसे-जैसे परंपराएँ बदल रही है, रिश्तों की मिठास खत्म होती जा रही है. जहाँ तक होली का सवाल है। तो अब मोबाइल और इंटरनेट पर ही “हैप्पी होली’ शरू होती है और खत्म हो जाती है. पहले जैसा हर्षोल्लास नहीं रह गया है. पहले बच्चे टोलियाँ बनाकर गली-गली में हुड़दंग मचाते थे. होली के 10- 12 दिन पहले ही मित्रों संग होली का हुड़दंग और गली -गली होली का चंदा इकट्वा करना और किसी पर भी बिना पूछे रंग उड़ेल देने से एक अलग प्यार दिखता था.
इस दौरान गाली देने पर भी लोग उसे हँसी में उड़ा देते थे. अब तो लोग मारपीट पर उतारू हो जाते हैं. पहले सबकी बहू-बेटियों को लोग अपने जैसा समझते थे. पूरा दिन घरों में पकवान बनते थे और मेहमानों की आवभगत होती थी. अब तो सबकुछ बस घरों में ही सिमट कर रह गया है. आजकल तो रिश्तों में मेल-मिलाप की कोई जगह ही नहीं रह गई है. मन हुआ तो औपचारिकता में फोन पर हैप्पी होली कहकर इतिश्री कर ली जाती है.
अब रिश्तों में वह मिठास नहीं रह गयी है. पहले लड़कियाँ भी घर-घर जाकर होली की खूब हुल्लड़ मचाती थीं. अब माहौल ऐसा हो गया है कि यदि कोई लड़की किसी रिश्तेदार के यहां ही ज्यादा देर तक रुक गई तो परिवार के लोग चिंतित हो जाते हैं कि क्यों इतनी देर हो गयी. अब लोगों को रिश्तों पर भी उतना भरोसा नहीं रह गया है. दूसरी ओर, होली के खान-पान में भी अब अंतर आ गया है. गुझिया, पूड़ी-कचौड़ी, आलू दम, खोवा आदि मात्र औपचारिकता रह गई है. अब तो होली के दिन भी मेहमानों को कोल्ड ड्रिक्स और फास्ट फुड जैसी चीजें परोसी जाने लगी हैं. वहीं, होलिका के चारों तरफ फेरे लगाकर सुख-शांति की कामना करना, गोबर से विभिन्न आकृति के उपले बनाना, दादी-नानी का मखाने वाली माला बनाना, रंग-बिरंगी ड्रेस में अपनी सखी-सहेलियों संग घर-घर मिठाई बाँटिना, गेूँ के पौधे भूना और होली के लोकगीतों को गाना.,
अब यह सब परंपराएँ तो अब नाम के ही रह गए हैं. होली रोपण के बाद से होली की मस्ती शरू हो जाती थी. छोटी बच्चियाँ गोबर से होली के लिए वल्डिये बनाती थी. उसमें गोबर के गहने, नारियल, पायल, बिछिया आदि बनाकर माला बनाती थीं. अब यह सब नजर नहीं आता. होली से पूर्व घरों में पलाश के फूलों को पीस कर रंग बनाए जाते थे. महिलाएँ होली के गीत गाती थी. होली के दिन गोठ भी होती थी जिसमें चंग की थाप पर होली के गीत गाए जाते थे. बसंत पंचमी से ही फाग के गीत गँजने लगते थे. आज के समय कुछ मंदिरों में ही होली के गीत सुनाई देते हैं.
होली के दिन कई समाज के लोग सामूहिक होली खेलने निकलते थे. साथ में ढोलक व चंग बजाई जाती थी, अब वह मस्ती-हुड़दंग कहाँ? अब होली केवल परंपरा का निर्वहन रह गया है. हाल के समय में समाज में आक्रोश और नफरत इस कदर बढ़ गई है कि कई परिवार होली के दिन घर से निकलना ही नहीं चाहते. लोग साल दर साल से जमकर होली मनाते आ रहे हैं. इस पर्व का मकसद कुरीतियों व बुराइयों का दहन कर आपसी भाईचारे को बनाए रखना है. आज भारत देश मे समस्याओं का अंबार लगा हुआ है.
बात सामाजिक असमानता की कें, इसके कारण समाज में आपसी प्रेम, भाईचारा, मानवता, नैतिकता खत्म होती जा रही हैं. कभी होली पर्व का अलग ही महत्व था, होलिका दहन पर पूरे परिवार के लोग एक साथ उपस्थित रहते थे. और होली के दिन एक दूसरे को रंग लगा व अबीर उड़ाकर पर्व मनाते थे. लोगों की टोली भाँग की मस्ती में फग्आ गीत गाते हुए घर-घर जाकर होली का प्रेम बाँटती थी.
अब हालत यह है कि होली के दिन आधे से अधिक लोग खुद को कमरे में बंद कर लेते हैं. हर माह, हर ऋतु किसी न किसी त्योहार का संदेश लेकर आती है. हमारे त्योहार हमें जीवंत बनाते हैं, ऊज्जा का संचार करते हैं, उदास मनों में आशा जागृत करते हैं. अकेलेपन के बोझ को थोड़ी देर के लिए ही सही, कम करके साथ के अहसास से परिपूर्ण करते हैं, यह उत्सवधर्मिता ही तो है जो हमारे देश को अन्य की तुलना में एक अलग पहचान प्रदान करती है. होली पर समाज में बढ़ती द्रेष भावना को कम करने के लिए मानवीय व आधारभूत अनिवार्यता की दृष्टि से देखना होगा।
खेलो होली
Poem On Holi In Hindi
रंगों की भर लाओ झोली.
मिलजुल के सब खेलो होली.
नाचो-गाओ, खुशी मनाओ,
करो सभी के संग ठिठोली.
करो रंग की खूब लड़ाई,
पर अपनी मीठी हो बोली.
खुशी रंग बरसाते आई.
अपनी हुड़दंगों की टोली.
जब आई गुजियाों की थाली,
टूट पड़े सारे हमजोली,
-महेंद्र कुमार वर्मा
होली है,
Poem On Holi In Hindi
होली है, भाई होली है.
बंदर काका भांग पिए हैं।
करता श्वान ठिठोली है.
खुशी में डुबा जंगल है।
आया पर्व सुमंगल है.
कोकिल, मैना गाएँ गीत
कौवे ने छेड़ा संगीत.
बिल्ली – चूहा रंग खेलते
मस्त ग्धों की टोली है.
लगा शेर को रंग गुलाल,
हाथी पानी रहा उछाल.
बुलबुल – गौरिया हैं संग
तितली को करती हैं तंग.
ठमक – ठमक कर नाचा मोर,
हवा फागुनी डोली चहूँ ओर,
मधुमक्खी ले आई शहद,
साथी सभी हुए गदगद.
तोते ने भी किया न देर,
लगा दिया था फलों का ढेर.,
सबने खाया – पिया प्रेम से
भरी हर्ष से झोली है.
होली है, भाई होली है.
-गौरीशंकर वैश्य विनम्र
होली
Poem On Holi In Hindi
देखो देखो रंगों का मौसम आया है
सबके मन को रंगीन बनाया है
बोले सब मीठी मीठी बोली
साथ मिलकर सब खेलें होली
सबके दिल से नफरत को मिटाया है।
देखो देखो रंगों का मौसम आया है.
हो रही रंग गुलालों की बारिश
बच्चे बूढ़े पूरी कर रहे अपनी ख्वाहिश
बिछड़े हुए सब मित्रों को मिलाया है।
देखो देखो रंगों का मौसम आया है.
सब के घर बन रही गुजिया मिठाई
चारो तरफ से महकती खुशबू आ
सबके दिल के गम को छुपाया है
देखो देखो रंगों का मौसम आया है.
-श्रीमती युगेश्वरी साहू
शेर सिंह का जंगल में ऐलान
Poem On Holi In Hindi
आज शेर सिंह ने कर दिया
आओ मिल होली मनाए
जंगल की देहलान
पंछी प्रेम के रंग रंगेंगे
आसमान को नीला
मछली प्रीत के रंग से करदे
पोखर का जल पीला
हाथी दादा शेरसिंह के
गाल मलेंगे रंग
बिल्ली संग चूहे की होगी
जंगल में हुड़दंग
भालू चाचा मस्ती में हो
खूब पिएँगे भंग
सबके सब रंग जाएँगे
मस्ती में एक रंग
इस होली रंग ही रंग होंगे
जंगल की देहलान !
-आशीष मोहन
होली हड़दंग
Poem On Holi In Hindi
पीला, लाल, हरा, गुलाल, लेकर आना हमजोली,
रंगों का बौछार और हंसी-खुशी से आयी है होली.
निर्मल रंग की साड़ी पहन के निकालना आंगन में,
पकड़ हाथो में पिचकारी राह देखूंगा खुली लेन में.
स्वागत करेंगे तुम्हारी इंद्रधनुषी आकाशीय सतरंग.
झमेंगे, नाचेंगे, मस्ती में चर हम दोनों पियेंगे भांग.
राधा-कृष्ण की मधुर प्रेमकथा फाग गीत गाऊंगा.
थिरक उठेगी प्रकृति ऐसा ढोल-नगाड़ा बजाऊंगा.
मत काटना तुम हरे वृक्षों को करने होलिका दहन.
खोकर अपनी प्राणवायु सभ्य से असभ्य हो मगन.
मोक्षाम्नि में जला दो अपने अंदर की सारी बुराईयां।
नैतिकता, व्यवहार, जीवन चरित्र न बदले यारियां.
मनाओ वसंतोत्सव एकता व भाईचारे का संदेश हो.
सामाजिक, संस्कृति और मुस्कान का समावेश हो.
-अशोक कुमार यादव
होली
रचनाकार- श्रीमती युगेश्वरी साहू
देखो देखो रंगों का मौसम आया है,
सबके मन को रंगीन बनाया है।
बोले सब मीठी मीठी बोली
साथ मिलकर सब खेलें होली।
सबके दिल से नफरत को मिटाया है।
देखो देखो रंगों का मौसम आया है।
हो रही रंग गुलालों की बारिश
बच्चे बूढ़े पूरी कर रहे अपनी ख्वाहिश
बिछड़े हुए सब मित्रों को मिलाया है
देखो देखो रंगों का मौसम आया है.
सब के घर बन रही गुजिया मिठाई
चारो तरफ से महकती खुशबू आई
सबके दिल के गम को छुपाया है।
देखो देखो रंगों का मौसम आया है.
रंग रंगीली आई होली
रचनाकार- सोनल मंजू
रंग रंगीली आई होली.
सबके मन को भाएँ होली.
पकड़ पकड़के सबको रंग दो,
बुरा ना मानो हैप्पी होली!
रंग रंगीली आई होली.
रोज-रोज न मौका मिलेगा.
न आज कोई बहाना चलेगा,
आऊँगी न तेरी बातों में,
क्योकि हूँ नही मैं इतनी भोली!
रंग रंगीली आई होली.
तरह-तरह का रंग है चोखा.
रहे ना आज कोई भी सूखा.
सबको पकड़ के टब में डुबो दो,
कर लो थोड़ी हँसी ठिठोली!
रंग रंगीली अई होली.
होली में गुझिया, पापड़ खाकर,
मिलो सभी को गले लगाकर.
रंगों सभी को प्रेम के रंग में,
ताकि बनी रहे हमजोली!
रंग रंगीली अई होली.
होली की घूम
शकुन्तला शर्मा
मची हुई होली की धूम
जंगल रहा समूचा झूम।
भोलू बन्दर ले पिचकारी
भिगो रहा चिड़ियों की साड़ी
नाच रहे मस्ती में मोर
तोते मचा रहे हैं शोर
बूढ़े भालू दादा जी को
हंस कर रही लोमड़ी चूम-चूम।
लोट-पौट हैं हाथी खूब
चीतल करे मसखरी खूब
नये चुटकले सुना रहा
हिरन गले मिलकर सबसे।
इथर-उधर करता है धूम
सबने ही पीली है भंग
मचा हुआ भारी हुड़दंग
सांसद शेरसिंह के घर।
पहुंचे सब गुलाल लेकर
नाँच उठे सब मिल-जुलकर
छनन-छनन छन-छन छम।
बोले शेरसिंह जी जाओ।
सब मिल-जुलकर खुशी मनाओ
होली भाई चारा लाती
गैरों को भी सगा बनाती
कीचड़ गोबर कभी न डालो
प्यार बढ़ाओ करके धूम।
रंग बिरंगी होली आयी
रचनाकार- गुड़िया गौतम
रंग -बिरंगी देखो आज होली है आयी,
सबके चेहरे पे आज खुशियां है लायी,
सब बच्चों को होली आज खुब है भारी,
सुबह से शुरू हो जाती हमारी होली.
भक्त प्रहलाद की बात याद है आयी,
अवगुणों पर गुणों की जीत फहरायी.
इन रंगों ने प्रेम स्नेह की गंगा हैं बहायी,
खुशियों की सुबह है आज देखो आयी.
रंगों के रंग में सजी दुनिया आज सारी,
बच्चें बुढ़े सब कर रहे होली की तैयारी.
काव्य सम्मेलन की सज गई महफ़िल,
सब मिलजुल कर बनो प्यार से होली,
नफरतों को भुलाकर सबने मिस्री घोली
पिचकारी लिए निकल पड़े सारी मंडली
छुन्नु-मुन्नू की टोली आज हुई मतवाली,
देवर-भाभी जी संग कें आज ठिठोली
रंग बिरंगी देखो आज होली है आयी.,
देवर -भाभी जी संग खुब होली खेली,
रंग बिरंगी देखो आज होली है आयी,
सबके चेहरे पे आज खुशियां है छायी.
होली और रंग
रचनाकार- कषि प्रधान
होली आयी, होली आयी,
रंगों का मेला है लायी,
जात-पात से ऊपर उठकर,
सबके मन को है ये भायी.
बुराई पे अच्छाई के,
जीत का ये पर्व है भाई.
सभी दोस्त आये हैं घरों को
सबके मन में खुशियां समाई.
बाला,राजू मोनू सोनू भी आये हैं,
साथ में अपने वे कई रंग लाये हैं.
कोई लाल, कोई पीला, रंग से सब सरावोर हैं.
रंगों का त्योहार है और गुलाल चारों ओर है.
आम का भी पहला फल हम इन्हीं दिनों में खाते हैं,
गाँव के सभी गलियों में फाग गीत भी गाते हैं.
होली का ये पर्व है रंगों से हम सब नहाते हैं,
एक दूसरे से मिलते हैं और रंग खूब लगाते हैं.
होली
रचनाकार- सुन्दर लाल डडसेना
हर इंसान अपने रंग में रंगा हो,
तो,समझ लेना होली है.
हर रंग कुछ कहता ही है,
हर रिश्ते में हँसी ठिठोली है.
जीवन रंग महकाती,
आनंद उमंग उल्लास से.
जीवन महक उठता है,
एक दूसरे के विश्वास से.
प्रकृति की हरियाली,
मधुमास की राग है.
नवकोपलों से लगता,
कोई लिया वैराण्य है.
हर गिले शिकवे को मिटा दो,
फैलाओ ये प्रेम रूप झोली है.
हर इसान अपने रंग में रंगा हो.
तो,समझ लेना होली है.
आग से राग तक,
राग से वैराग्य तक
चलता रहे यूँ ही,
परंपरा ये फाग तक,
होलिका दहन की आस्था,
युगों-यु्गों से चली आ रही.
आग में चलना,राग में गाना,
प्रेम की गंगा जो बही.
परंपरा ये अनुठी, होती कितनी,
हर किसी से हँसी ठिठोली है.
हर इंसान अपने रंग में रंगा हो,
तो समझ लेना होली है.
होली है
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र
होली है, भाई होली है.
बंदर काका भांग पिए हैं।
करता श्वान ठिठोली है.
खुशी में डूब जंगल है।
आया पर्व समंगल है.
कोकिल, मैना गाएँ गीत
कौवे ने छेड़ा संगीत.
बिल्ली – चूहा रंग खेलते
मस्त गरधों की टोली है.
लगा शेर को रंग गुलाल,
हाथी पानी रहा उछाल.
बुलबुल -गौरैया हैं संग,
तितली को करती हैं तंग.
ठुमक – ठुमक कर नाचा मोर,
हवा फागुनी डोली चहूँ ओर.
मधुमक्खी ले आई शहद,
साथी सभी हुए गदगद.
तोते ने भी किया न देर,
लगा दिया था फलों का ढेर.
सबने खाया – पिया प्रेम से
भरी हर्ष से झोली है.
होली है, भाई होली है.
होली
रचनाकार- प्रिया देवांगन
देखो देखो रंगों का मौसम आया है
सबके मन को रंगीन बनाया है।
बोले सब मीठी मीठी बोली
साथ मिलकर सब खेलें होली
सबके दिल से नफरत को मिटाया है।
देखो देखो रंगों का मौसम आया है.
हो रही रंग गुलालों की बारिश
बच्चे बूढ़े पूरी कर रहे अपनी ख्वाहिश
बिछड़े हुए सब मित्रों को मिलाया है।
देखो देखो रंगों का मौसम आया है..
सब के घर बन रही गुजिया मिठाई
चारो तरफ से महकती खुशबू आई
सबके दिल के गम को छुपाया है
देखो देखो रंगों का मौसम आया है.
खेलो होली
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा
रंगों की भर लाओ झोली.
मिलजुल के सब खेलो होली.
नाचो-गाओ, ख़ुशी मनाओ,
करो सभी के संग ठिठोली,
करो रंग की खूब लड़ाई,
पर अपनी मीठी हो बोली.
खुशी रंग बरसाते आई ,
अपनी हुड़दंगों की टोली.
जब आई गुजियों की थाली,
टूट पड़े सारे हमजोली.