7+ हिंदी दिवस पर सुंदर कविता | Poem On Hindi Diwas In Hindi

Poem On Hindi Diwas In Hindi :- जिस देश में हम पल बढ़कर बड़े हुए हैं, उस माटी के प्रति हमारा लगाव और प्रेम होना स्वाभाविक है. देश की वन संपदा, जीव जंत् नदी, नाले ,झरने, पहाड़, पशु पक्षी आदि से हमारा आत्मीय संबंध अपने आप ही स्थापित हो जाता है. सोचिए कि यदि देश की इन चीजों से हमारा इतना लगाव है तो देश की भाषा जिस के बिना हम मूक ही कहलाएँगे, से हमारा क्या संबंध होगा? किसी भी देश की भाषा उस देश के निवासियों के अंतर्मन और मस्तिष्क के भावों को आधार प्रदान करती है. भाषा के माध्यम से ही हम अपने भावों को दूसरों तक प्रेषित करते हैं और उन्हें अपने विचार समझा सकते हैं.

भाषा के प्रयोग किए बिना कोई अंदाज नहीं लगा सकता कि हम कहना क्या चाहते हैं. संकेतों और हाव-भाव को समझना इतना आसान नहीं होता जितना बोल कर अपने आप को व्यक्त करना. हर बात हाव भाव और संकेतों के माध्यम से नहीं समझाई जा सकती. हम सभी भारतवासी हैं और इस बात पर हमें गर्व है. भारत में अनेक बोलियाँ और भाषाएँ बोली जाती हैं. विविधता में एकता का प्रतीक है हमारा भारत, भारत में अनेक राज्य हैं और प्रत्येक राज्य की अपनी विशिष्ट पहचान है, अलग बोली, अलग भाषा है; किंतु इतनी विविधता के बाद भी हम सभी भारतवासी एक हैं और एक द्सरे की भाषा सहजता और आसानी से समझ सकते हैं. भारत में चाहे जितनी भी भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हों, किंत हिंदी का अपना विशिष्ट स्थान है.

हिंदी भारत देश के भाल की बिंदी है अर्थात यह शिरोधार्य है. अपने राष्ट्र की भाषा का सम्मान करना अपनी माता का सम्मान करने के बराबर है. जिस प्रकार हम अपने माता-पिता और पूर्वजों का आदर करते हैं उसी प्रकार हमारे हृदय में अपनी भाषा के प्रति भी सम्मान होना चाहिए और यह सम्मान किसी को दिखाने के लिए नहीं, अपित् महसूस करने के लिए होना चाहिए,.सच्चे दिल से होना चाहिए.निसंदेह,हिंदी बोलते समय प्रत्येक भारतवासी को गर्व का अनुभव होता है. जब विदेशों में भी लोग हिंदी का प्रयोग करते हैं और हिंदी बोलते समय खुद को सम्मानित महसूस करते हैं, तो यह देखकर खुशी और गर्व से हमारा सीना चौड़ा हो जाता है. जरा सोचिए ,हिंदी भाषी न होने के बावजूद भी विदेशों में हिंदी के प्रति क्रेज किस प्रकार बढ़ता जा रहा है, विदेश में रहने वाले लोग हिंदी बोल कर ख़ुद को सम्मानित महसूस करते हैं.

जब हिंदी भाषी न होने के बावजूद दुनिया के अनेक देश हिंदी के प्रति अपने हृदय में यह आदर और प्रेम रख सकते हैं तो हम तो हैं ही हिंदीभाषी, हमारे लिए तो हिंदी हमारी माता के समान है और अपनी माता के सम्मान को बरकरार रखना हम सबका परम दायित्व बनता है. अपने इस दायित्व को निभाने में हमें किसी प्रकार की कोताही नहीं बरतनी चाहिए और पूरी ईमानदारी और गर्व के साथ इस जिम्मेदारी को निभाना चाहिए.

निस्संदेह हमारे राष्ट्र में हिंदी का सम्मान किया जाता है और हिंदी के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए हम हिंदी का प्रयोग करते हैं और खुद को गौरवान्वित भी महसूस करते हैं किंतु कहा जाता है कि अपवाद तो हर जगह पाए जाते हैं. हमारी हिंदी भी इन अपवादों से खुद को बचा नहीं पाई है. कहने का तात्पर्य है कि आज हमारे देश के लाखों लोग हिंदी भाषा बोलने में शर्म का अनुभव करते हैं व्यत्तिगत अपवादों को छोड़ भी दें तो भी अनेक प्रकार के सरकारी और गैर सरकारी दोनों ही प्रकार के शिक्षण संस्थानों और कार्यालयों में हिंदी प्रयोग को क्लिष्ट समझा जाता है और इसके स्थान पर विदेशी भाषाओं के प्रयोग को सहज समझकर प्रयोग किया जाता है. यह स्थिति अति दुखद है. विदेशी भाषाएँ सीखना कदापि गलत नहीं अपित् यह तो अच्छी बात है कि हम दुसरी भाषाओं को सीखने में रुचि दिखा रहे हैं और अपने सामान्य ज्ञान में निरंतर वृद्धि भी कर रहे हैं जो आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मज़बूत बनाने में भी एक महत्त्वपर्ण भूमिका निभाएगी. किंतु विदेशी भाषाओं को सीखकर अपने ही देश में उनका वर्चस्व स्थापित करने की अनुमति देना सरासर गलत है. अपनी भाषा के स्थान पर विदेशी भाषाओं को प्रयोग करना भी गलत है. अपनी भाषा के साथ-साथ विदेशी भाषाओं का प्रयोग स्वीकार्य हो सकता है. किंतु, विदेशी भाषाओं से अपनी भाषा को रिप्लेस करना स्वीकार्य नहीं है.

वर्तमान में अनेक कार्यालयों, संस्थानों और कंपनियों में हिंदी का न के बराबर प्रयोग किया जाता है. हिंदी के स्थान पर विदेशी भाषा का प्रयोग करने में ही वहाँ गर्व का अनुभव किया जाता है. हिंदी बोलने वाले कर्मचारियों को हेय दृष्ट से देखा जाता है, ऐसा करना न केवल अनैतिकता की श्रेणी में आता है अपित् अपने राष्ट्र के सम्मान पर भी यह प्रहार है. भारत के असंख्य लोग हिंदी बोलने में शर्म का अनुभव करते हैं क्योंकि उनके अनुसार विदेशी भाषाओं के सामने हिंदी फीकी लगती है और हिंदी बोलने पर उनका अपमान होता है. इस प्रकार की सोच बेहद निंदनीय है शर्मनाक है. निज भाषा के प्रति इस प्रकार की घटिया सोच या निम्न स्तर की मानसिकता ही हिंदी के पतन का मुख्य कारण बनती जा रही है. हिंदी के उत्थान की जिम्मेदारी हम सभी पर है. विदेशों में जिस भाषा को इतना प्यार और सम्मान दिया जा रहा है उस भाषा की अपने ही घर में अपने ही देश में इस प्रकार दखद स्थिति देखकर मन आहत होता है. क्यों लोग यह भूल जाते हैं कि हमारी अपनी भाषा ही हमारी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है. विदेशी भाषाओं को सीखना सिखाना उस स्थिति में स्वीकार किया जा सकता है जब हम अपनी भाषाओं को प्रमुखता देकर अपनाएँ और जिस प्रकार विदेशी लोग अपनी भाषा के प्रति गौरव महसूस करते हैं, उसी प्रकार हम भी अपनी भाषा के गौरव को बनाए रखने की दिशा में हर संभव प्रयास कें. देश के बाहर इसके सम्मान को और भी ऊँचा उठाने के लिए हमें सार्थक प्रयत्न करने चाहिए,

हिंदी हमारा गौरव है, हमारा सम्मान है हमारा अभिमान है,यह बात हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए. कुछ लोगों की निम्न मानसिकता के चलते हम हिंदी को बिसरा नहीं सकते. हिंदी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि विदेशों में आजकल हिंदी भाषी लोगों को अत्यधिक सम्मान और आदर की दृष्टि से देखा जाता है. भारत की ही तरह वहाँ भी हिंदी साहित्य सीखने की ललक लोगों में देखी जाती है. जिस प्रकार हमारे देश में हिंदी साहित्य को समृद्धर करने के लिए समय-समय पर विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं., वहाँ भी इसी प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित करने का चलन चल पड़ा है. भारत की संस्कृति को विदेशी उत्साह से अपना रहे और सराह रहे हैं. निस्संदेह हिंदी के प्रति पूरे विश्व का प्रेम हिंदी को एक ऐसे स्तर पर लेकर जाएगा

जहां हिंदी ना केवल भारत में अपितु पूरे विश्व में अपना परचम लहराएगी. वह दिन दूर नहीं जब हिंदी न केवल भारत अपितु समूचे विश्व के लिए गौरव का विषय बनेगी. इस बात को हम नकार नहीं सकते कि वर्तमान में हिंदी की दशा शोचनीय है, किंत् हम सब मिलकर अपने सामुहिक प्रयासों से हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक क्रांति लेकर आएँगे और हिंदी को इसका वास्तविक अधिकार और स्थान दिला कर रहेंगे. हिंदी हमारी आत्मा में बसती है. किसी ने सही ही कहा है कि – आप चाहे दुनिया की जितनी भी भाषाएँ क्यों न सीख लें किंत् दूख, तकलीफ और यहाँ तककी सपनों की दनिया में भी आप अपनी मातृभाषा में ही संवाद करते हैं. कहने का तात्पर्य यह है कि हम हिंदीभाषी, हिंदी के सम्मान पर अब कोई आँच नहीं आने देंगे, हम इसका गौरव बढ़ाएंगे और कहीं भी इसका अपमान नहीं होने देंगे. हम हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपना महत्वपूर्ण योगदान देंगे क्योंकि हिंदी है तो हम हैं,हिंदी है तो हमारा राष्ट्र है. अपने राष्ट्र के अस्तित्व को संरक्षित करने आअपनी संस्कृति को अगली पीढ़ियों तक हस्तांतरित करने हेतु हमें अपनी भाषा को स्नेह पूर्वक संरक्षित करना होगा और इसके प्रयोग में गर्व महसूस करना होगा. यदि हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति को बनाए रखना है तो हमें हिंदी को हर हाल में उसकी जगह दिलानी होगी. हिंदी भाषा के प्रति अपने मन के उद्धार मैं निम्न पंक्तियों में अपने पाठकों के समक्ष रखना चाहती हूँ;

 

Poem On Hindi Diwas In Hindi

मातृभाषा का नाम है हिंदी

Poem On Hindi Diwas In Hindi

 

मातृभाषा का नाम है हिंदी

देश का अपने सम्मान है हिंदी

है ये सब भाषाओं से न्यारी

हर हिंदुस्तानी का अभिमान है हिंदी

 

कश्मीर का सौंदर्य है हिंदी

पंजाब का बांकपन है हिंदी

है राजस्थान की संस्कृति निराली

हरियाणा का अपनापन है हिंदी

 

सभ्यता का हम पर एहसान है हिंदी

कण कण में विद्यमान है हिंदी

भारतवर्ष को करती ये अलंकृत

विदेशों में भी शोभायमान है हिंदी

 

ऋतुओं का आगमन है हिंदी

त्योहारों का मनाना है हिंदी

नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाती

जीने का जीवन नाम है हिंदी

 

देश का गुणगान है हिंदी

हर जन का स्वाभिमान है हिंदी

पल भर में बनाती ये आसान है हिंदी

अनेकता में एकता का नाम है हिंदी

 

नस नस में विराजमान है हिंदी

दिलों में दैदीप्यमान है हिंदी

बड़ी से बड़ी कठिनाई को

भारत का दूजा नाम है हिंदी

 

सबकी आन बान और शान है हिंदी

जोड़े रखती सबको संग अपने

भीड़ से हटकर बनाई है जिसने

एक अलग पहचान है हिंदी

 

हिन्दी भाषा

Poem On Hindi Diwas In Hindi

 

सरल,सहज और मीठी भाषा,

बह प्रचलित और श्रेष्ठ भाषा.

हम सब की है प्रिय भाषा,

हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा,

 

साहित्य का श्रंगार है हिंदी,

सूर मीरा की भाषा हिन्दी,

मैत्री की भाषा है हिन्दी,

राष्ट्र का प्रतीक है हिन्दी,

 

पढ़ते हिन्दी,लिखते हिन्दी,

सुनते और समझते हिन्दी.

हिंदी भाषा हमारी शान,

करते हम इस पर अभिमान.

 

अँग्रेजी का नव विकल्प बन

लेती है अँगड़ाई हिंदी.

संस्कृति, उत्सव, त्योहारों की

नस – नस में है समायी हिंदी.

 

सहज, सरल भावों – शब्दों की

शीतल – सी पुरवाई हिंदी.

देशज बोली, भाषाओं की

करती है अगुवाई हिंदी.

 

हो संयुक्त राषट्र की भाषा

गिने न और दहाई हिंदी.

-प्रीतम कुमार साहू

 

हिंदी

Poem On Hindi Diwas In Hindi

 

विश्व पटल पर छाई हिंदी.

जन – जन के मनभायी हिंदी.

मान लिया संयुक्त राष्ट्र ने

गर्व सहित, मुस्काई हिंदी.

 

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर

आदृत हो, इतराई हिंदी.

दूर विदेशी संस्थानों में

अब जा रही पढ़ाई हिंदी,

 

प्रौद्योगिकी – अभियंत्रण में

अतिशय धाक जमायी हिंदी.

दुनियाभर में बोली जाती

विपणन ने अपनाई हिंदी.

 

टीवी, फिल्म, पत्रिका, मोबाइल

चैनल में इठलाई हिंदी.

अँग्रेजी का नव विकल्प बन

लेती है अँगड़ाई हिंदी.

 

संस्कृति, उत्सव, त्योहारों की

नस – नस में है समायी हिंदी.

सहज, सरल भावों – शब्दों की

शीतल – सी पुरवाई हिंदी.

 

देशज बोली, भाषाओं की

करती है अगुवाई हिंदी.

हो संयुक्त राषट्र की भाषा

गिने न और दहाई हिंदी.

-गौरीशंकर वैश्य विनम्र

 

हिंदी

Poem On Hindi Diwas In Hindi

 

हिन्दी राष्ट्रभाषा हो हमारी.

करे गर्व, हम भारतवासी

हिंदी, राष्ट्रभषा हमारी है

भारत भूमि के कण-कण में

 

मूदुल मिठास पुरानी है

शिक्षा की अलख जगाती है

अगुणित, अतुलित, अलौकिक, है

यह इसकी महिमा न्यारी है

 

भारत की शान अस्मिता है यह

एकता के पाठ पढ़ाती है

ऋषि मुनियों की वाणी है

संज्ञा, रस,छंद, अलंकार से

 

तन-मन इसका शोभित है

गीत, गज़ल, दोहों में, उतरकर

सबके हृदय समाई है

वीरों के इतिहास समेटे

स्वर,व्यंजन, मात्रा से, सुसज्जित

 

गौरवशाली हिंदी हमारी,

गौरव गाथा सुनाती है,

त्याग, तपस्या, बलिदानों से

रक्त रंजित इसकी भी एक कहानी है,

 

जनवाणी है यह कलयुग में,

सरगम के सप्त सुरो में पिरो कर

सभ्यता,संस्कृति, साथ समाये

मीठे झरने सी झरती है

 

है समृद्ध, सुसंस्कृत, सुंदर,

सरलता इसकी रवानी है

महादेवी, निराला, पंत की,

लेखनी में भी ये समाई हैं

 

कश्मीर से लेकर कन्याकूमारी तक

सबकी मुंह जबानी है

महिमा इसकी गानी है

युगो युगो से रानी है

-सुधारानी शर्मा

 

हिन्दी माथे की बिंदी

Poem On Hindi Diwas In Hindi

 

गूँजे स्वर हिंदी जहाँ, आज देश परदेश.

चली हवा सदभाव की,गढ़ती सुंदर परिवेश.

हिंदी मात समान है, करें सभी है गर्व.

भाषा के उत्थान में, लगा देश है सर्व,

 

साहित्य जगत में सदा,बहे काव्य रसधार,

तुलसी कबीर ग्रंथ से, मिले ज्ञान भंडार.

हिंदी के विस्तार में,लगे सभी है जान.

विश्व गुरू हिंदी बने, सबका है अरमान.

 

हिंदी प्राणो में बसी. करते सब सम्मान.

भाषा की सरताज है, हिंदी बड़ी महान,

सरल सहज भाषा बडी, जीवन की आधार.

सबकी है ये लाडली,करे सभी है प्यार.

 

बोली इसकी है मधुर, कानों मिसरी धोल

बसे हृदय में है सदा, इसके मीठे बोल

जन जन की भाषा बने, आशा की है आस.

चमके बिंदी माथ पर, सबको हो आभास.

-आशा उमेश पान्डिय

 

हिंदी हृदय गान है

Poem On Hindi Diwas In Hindi

 

आन-बान सब शान है,और हमारा गर्व.

हिंदी से ही पर्व है, हिंदी सौरभ सर्व,

हिंदी हृदय गान है, मृदु गुणों की खान.

आखर-आखर प्रेम है,शब्द-शब्द है ज्ञान.

 

बिंदिया भारत भाल की, हिंदी एक पहचान.

सैर कराती विश्व की,बने किताबी यान.

प्रीत प्रेम की भूमि है, हिंदी निज अभिमान.

मिला कहाँ किसको कहीं, बिन भाषा सम्मान.

 

वन्दन, अभिनन्दन करें ऐसा हो गुणगान.

ग्रंथन हिंदी का कर लो, तभी मिले सम्मान.

हिंदी भाषा रस भरी, रखती अलग पहचान.

हिंदी वेद पुराण है, हिंदी है हिन्दुस्तान.

 

हिंदी का मैं दास हूँ, करु मैं इसकी बात.

हिंदी मेरे उर बरसे, हिंदी हो जज्बात,

निज भाषा का धनी जो, वही सही धनवान,

अपनी भाषा सीख कर, बनता व्यक्ति महान.

 

मौसम बदले रंग ज़ब, तब बदले परिवेश.

हो हिंदीमय स्वयं जब, तभी बदलता देश.

निज भाषा बिन ज्ञान का, होता कब उत्थान,

अपनी भाषा में रचे,सौरभ छंद सुजान,

 

एक दिवस में क्यों बंधे, हिन्दी का अभियान.

रचे बसे हर पल रहे, हिन्दी हिन्दुस्तान.

-सत्यवान

 

 

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Leave a Comment

एडवरटाइज हटाएं यहाँ क्लिक करें

You cannot copy content of this page