Poem On Daughter In Hindi : – आजकल लडकियाँ बंधनों को तोड़कर आसमान छु रही हैं और समाज के लिए अदर्श बनी हुई हैं. समाज में लड़कियों को लड़कों से कम आंका जाता है. शारीरिक सामथ्थ्य ही नहीं अन्य कामों में भी यही समझा जाता है कि जो काम लड़के कर सकते हैं वह लड़कियाँ नहीं कर सकतीं, जबकि ऐसे कई उदाहरण मिल जाएँगे जिन में लड़कियों ने खुद को लड़कों से बेहतर साबित किया है.
खेलों में खिलाडिय्ों की इतनी बड़ी संख्या में से ज्यादातर लड़कियों ने ही देश के लिए मेडल जीतकर देश का मान बढ़ाया यही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी लड़कियाँ लड़कों से न केवल कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं बल्कि आगे हैं. लगातार देश में 10वीं और 12वीं कक्षा के परीक्षा परिणाम में लड़कियाँ ही पहले स्थान पर रहती हैं. आईएएस बनने की होड़ हो, विमान या लड़ाकू जहाज उड़ाने की या मेट्रो ट्रेन चलाने की, लड़कियाँ हर क्षेत्र में अपनी सफलता के झंडे गाड़ रही हैं. इस के बाद भी लड़कियों को लड़कों से कम समझना समाज की भूल है.
कौन कहता है कि लडकियाँ बोझ हैं? अज की लड़की अपना तो क्या, परिवार का बोझ भी अपने कंधों पर उठाने की हिम्मत रखती हैं. तभी तो उन्हे संसार की जननी कहा गया है. पहले स्ी को अबला माना जाता है, लेकिन आज की नारी अबला नहीं. शिक्षा हो या खेल कूद का क्षे्र, वह हर जगह अपनी मेहनत के बल पर आगे बढ़ रही हैं. बेटों की तरह वह भी पूरी निष्ठा के साथ जिम्मेदारियाँ संभाल रही है. देश की बेटियाँ अब सिर्फ सिलाई- कढ़ाई या व्यूटी पार्लर तक ही सीमित नहीं रह गई हैं बल्कि वह तो दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए भी तैयार हैं.
लोकतांत्रिक देश में राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक दृष्टि से बालिका शिक्षा का बहुत अधिक महत्त्व है, नारी की शिक्षा पूरे परिवार को शिक्षित करती है., शिक्षित महिला पुरुष से किसी भी कार्यक्षेत्र मे पीछे नहीं रहती. कुछ क्षेत्रों में तो वह पुरुष से भी अधिक कुशल सिद्ध हुई है- जैसे शिक्षा , चिकित्सा व परिचर्या के क्षेत्र में यदि बालिका को समूचित शिक्षा दी जाए तो वह कुशल नेत्री, समाजसेवी, कुशल व्यवसायी, राजनैतिक नेत्री यहाँ तक कि कुशल इंजीनियर, टेक्नीशियन, सूचना प्रौद्योगिकी, अधिवक्ता, चिकित्सक बन राष्ट्र की सर्वतोमुखी प्रगति में योगदान दे सकती है.
शिक्षा से नारी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो सकती है. इतिहास पर दृष्टिपात करें तो हम पाते हैं कि धार्मिक, सैद्वान्तिक, मान्यतागत रूप में स्त्री को पूज्य माना जाता रहा है परन्तु उसका कार्यक्षेत्र घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिये जाने से उसकी शिक्षा- दीक्षा पर कम ध्यान दिया गया है. वैदिक काल में बालिकाएँ प्रायः परिवार में ही शिक्षा ग्रहण करती थीं क्योंकि उनके लिए पृथक गुरुकुल, आश्रम, आदि की प्रथा नहीं थी. केवल कुछ गुरुकुलों में गुरु की पुत्री के शिक्षा में सम्मिलित होने के उदाहरण प्राप्त होते हैं. वैदिक काल में बालिकाओं को घरों में धर्म, साहित्य, नृत्य, संगीत, काव्य आदि की शिक्षा दी जाती थी.
वैदिक काल में यद्यपि विदुषी घोषा, गार्गी, आत्रेयी, शकुंतला, उर्वशी, अपाला महिलाओं के उदाहरण ऋ्वेद में प्राप्त होते हैं जो वेदों के अध्ययन में प्रवीण थीं. वर्तमान समय में बालिकाओं द्वारा हर क्षत्र में उच्च स्थान प्राप्त करने के बावजूद भी बालक बालिकाओं की शिक्षा में अंतर चला आ रहा है.
समाज में यह मानसिकता पाई जाती है कि बालिकाओं की शिक्षा आवश्यक नहीं है, उन्हें कौनसी नौकरी करानी है. वे केवल चिट्टी पत्ी लिखना, घरेलू कार्य करना सीख लें यही पर्याप्त है. इस मानसिकता के चलते कुछ परिवारों में प्रथमिक, कुछ में मिडिल तथा कुछ में मैट्रिक तक की शिक्षा ही पर्याप्त मान ली जाती है तथा इससे ऊपर की उच्च शिक्षा के अवसर तो भाग्यशील बालिकाओं को ही मिल पाे हैं. इसी मानसिकता के कारण बालिकाओं की शिक्षा अतीत से लेकर आज तक प्रभावित होती रही है.
बालकों को वंश की वृद्धि करने वाला, कमाऊ- बुढ़ापे का सहारा मानकर उसे उच्च शिक्षा दिलायी जाती है और बालिकाओं के लिये यह धारणा है कि इसे अधिक पढ़ायेंगे तो उसके लिए अधिक पढ़ा- लिखा लड़का ढूँढना होगा जिसके लिए अधिक दहेज भी देना होगा. घरेलू कार्यों में व्यस्त होने के कारण स्कूल से मिला गृहकार्य या निर्धारित पाठ के लिए बालिकाएँ पढ़ने का समय नहीं निकाल पातीं, इसके कारण कई बालिकाएँ पढना छोड़ देती हैं.
बालिकाओं के लिए पृथक विद्यालय न होने से कई अभिभावक बालिकाओं को ऐसे स्कूलों में भेजना पसंद नहीं करते जहाँ सहशिक्षा हो. मुस्लिम वर्ग में बालिकाओं की पर्दा प्रथा तथा बुरका प्रथा उन्हें उच्च शिक्षा अर्जित करने की छूट नहीं देता. कई हिन्दू जातियों में भी पर्दा प्रथा के कारण या बाल विवाह, कम उम्र में सगाई आदि के कारण लड़कियों की पढ़ाई छूट जाती है. अनेक क्षे्रों में बालिकाएँ इसलिए भी स्कूल नहीं जा पाती क्योंकि गुंडा तत्व असामाजिक तत्व, बालिकाओं पर फब्तियों कसना, छेड़छाड़ करने जैसे कृत्य करते हैं. बालिका शिक्षा की प्रगति की दिशा में ऐसी घटनाएँ अवरोधक हैं. शिक्षा पर पैसा व्यय करने के बाद भी नौकरी के अवसर उपलब्ध न होना उनमें शिक्षा के प्रति वितृष्णा भी उत्पन्न कर देता है.
प्राइवेट सेक्टर के स्कूलों, हॉस्पटल आदि में पढ़ी- लिखी महिलाओं को उपयुक्त वेतन अप्राप्त होता है तथा स्वयं के खर्च तक के लिए वे वेतन से व्यय कर सकने में असमर्थ रहती है. घर से दूर नौकरी कराने हेतु लड़कियों के माता- पिता सहमत नहीं होते, बालिका शिक्षा में अवरोध का एक कारण यह भी है कि महिला शिक्षकों की स्कूलों व कॉलेजों में कमी है जिसके कारण अनेक बालिकाएँ शिक्षा प्रक्रिया में इन संस्थाओं में घुल-मिल नहीं पातीं तथा स्वयं को अजनबी अनुभव करती हैं. घर से दुर होस्टलों आदि में रहकर शिक्षा प्राप्त करना अनेक परम्परागत विचारों के परिवारों की बालिकाओं के लिए संभव नहीं हो पाता.
ऐसे में घर में रहकर दूरस्थ शिक्षा द्वारा उच्च शिक्षा के कोर्स करना बालिकाओं के लिए अधिक अनुकूल होता है. बालिका की शिक्षा की बालकों की तुलना में कमी को दूर करने के लिए न केवल शैक्षिक सुविधाओं का व्यापक विकास करना आवश्यक है बल्कि बालिका शिक्षा के मार्ग की अवरोधक स्थितियों का निराकरण भी जरूरी है. बालिका शिक्षा की असमता के कारणों हेतु ठोस तथा कारगर उपाय उठाए जाने की भी आवश्यकता है. इस हेतु विशेष योजनाएँ, अधिक बजट आवंटन के साथ प्रशासन के सख्त व अनुकूल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है.
बेटी दिवस
Poem On Daughter In Hindi
दो कुलों का मान होती हैं बेटियाँ,
पूरे घर की जान होती हैं बेटियाँ.
घर परिवार आबाद करती हैं बेटियाँ,
थम जाता ससार अगर ना होती बेटियाँ.
घर की जान होती हैं बेटियाँ,
पिता की आन-बान-शान होती हैं बेटियाँ.
बेटों से कम नहीं होती हैं बेटियाँ,
पिता का गुमान होती हैं बेटियाँ.
माँ बहु भाभी पत्नी बनकर सेवा करती हैं बेटियाँ,
खुद अपमान सह, दूसरों को मान देती हैं बेटियाँ.
कमियों को भुला जो मिले, उसमें खुश रहती हैं बेटियाँ,
हर हाल में खुश हो मुस्कुराती रहती हैं बेटियाँ.
अपनी पहचान मिटा, औरों की पहचान अपनाती हैं बेटियाँ,
बहू बन सास-ससुर की सेवा करती हैं बेटियाँ.
सुनो जग वालो! तन-मन-हृदय सब कुछ हैं बेटियाँ,
लक्ष्मी,सरस्वती, पार्वती का रूप हैं बेटियाँ.
-किशन सनमुखदास
बेटी दिवस
Poem On Daughter In Hindi
दो कुलों का मान होती हैं बेटियाँ,
पूरे घर की जान होती हैं बेटियाँ.
घर परिवार आबाद करती हैं बेटियाँ,
थम जाता संसार अगर ना होती बेटियां।
घर की जान होती हैं बेटियाँ,
पिता की आन-बान-शान होती हैं बेटियाँ.
बेटों से कम नहीं होती है बेटियाँ,
पिता का गुमान होती हैं बेटियाँ.
माँ बहू भाभी पत्नी बनकर सेवा करती हैं बेटियाँ,
खुद अपमान सह, दूसरों को मान देती हैं बेटियाँ.
कमियों को भुला जो मिले, उसमें खुश रहती हैं बेटियाँ,
हर हाल में खुश हो मुस्कुराती रहती हैं बेटियाँ.
अपनी पहचान मिटा, औरों की पहचान अपनाती हैं बेटियाँ,
बहू बन सास-ससुर की सेवा करती है बेटियाँ.,
सुनो जग वालो! तन-मन-हृदय सब कुछ हैं बेटियाँ,
लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती का रूप हैं बेटियाँ.
बेटी
Poem On Daughter In Hindi
मुझे गर्व है बेटी पर,
बनेगी सेना में अफसर,
जाती है सैनिक स्कूल,
करेगी सपनों को पूरा.
जमकर मजा चखाएगी,
कभी शत्रु ने यदि घूरा.
दे रक्षा अकादमी परीक्षा,
पा जाएगी शुभ अवसर.
ज्ञान और व्यक्तित्व भरोसे,
योग्य – सफल कहलाएगी.
जीतेगी हर एक लड़ाई,
दुष्टों के दिल दहलाएगी.
सोच पुरानी बदलेगी वह,
देश बनेगा, अपना घर,
खुल जाएंगे द्वार गगन के,
जहाँ उड़ेगी पंख पसार.
तेज और ऊँची उड़ान से,
नवल हर्ष को मिले प्रसार.
बचकर सामाजिक दबाव से,
बनेगी पूर्ण सशक्त निडर,
संकल्पों की दिव्य मूर्ति है,
बेटी है कुटुंब की शान.
सेना में भर्ती होकर वह,
बढ़ा सकेगी निज अभिमान,
बेटी, बेटा से क्या कम है,
कभी न दोनों में अंतर,
मुझे गर्व है बेटी पर।
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य
बेटी
Poem On Daughter In Hindi
मुझे गर्व है बेटी पर,
बनेगी सेना में अफसर,
जाती है सैनिक स्कूल
करेगी सपनों को पूरा,
जमकर मजा चखाएगी
कभी शत्रु ने यदि घूरा,
दे रक्षा अकादमी परीक्षा
पा जाएगी शुभ अवसर
ज्ञान और व्यक्तित्व भरोसे
योग्य – सफल कहलाएगी,
जीतेगी हर एक लड़ाई
दुष्टों को दहलाएगी,
सोच पुरानी बदलेगी वह
देश बनेगा, अपना घर.
खुल जाएंगे दूर गगन के
जहाँ उड़ेगी पंख पसार,
तेज और ऊँची उड़ान से
नए हर्ष को मिले प्रसार,
बचकर सामाजिक दबाव से
बनेगी पूर्ण सशक्त – निडर,
संकल्पों की दिव्य मूर्ति है।
बेटी है कुटुंब की शान,
सेना में भर्ती होकर वह
बढ़ा सकेगी निज अभिमान,
बेटी, बेटा से क्या कम है
न करना दोनों में अंतर,
मुझे गर्व है बेटी पर.
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र
बिटिया
Poem On Daughter In Hindi
रोज़ सवेर रिक्शा आती.
बिटिया जिसमें शाला जाती.
शाला में वह जाकर पढ़ती.
पढ़ – पढ़कर वह आगे बढ़ती
जीवन उसका बहुत सुनहरा.
उससे रोशन देश हमारा.
वही देश की आज शान है.
कल का अपना देश महान है.
रचनाकार- अशोक ‘आनन
बेटी
Poem On Daughter In Hindi
सावन में डाली का झूला है बेटी.
उपवन में खिलता गुलाब है बेटी.
उगते हुए सूर्य की लाली है बेटी,
संध्या में दिया बाती है बेटी.,
आसमाँ में टिमटिमाता तारा है बेटी.
रसों में श्रृंगार सी होती हैं बेटी.
अलंकारों में उपमा सी होती हैं बेटी.
माता पिता की आन है बेटी.
भाई की राखी का मान है बेटी,
उदासी में उल्लास का संचार है बेटी.
गम की हर दवा का उपचार है बेटी.
बेटियों से ही घर की पहचान होती है.
एक-दो नही ये तीन कुलों की आन होती है.
धन्य है वह माता पिता
जिनके घर में बेटियो का हुआ पदार्पण.
बेटियों जितना भला कहाँ मिलता है समर्पण,
रचनाकार- अर्चना लखोटिया
बालिका शिक्षा की लौ
Poem On Daughter In Hindi
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ सब कहते हैं,
पर कोई उचित कदम क्यों उठाता नहीं.
अज्ञान के अंधकार में आज भी है बेटी,
बालिका शिक्षा की लौ क्यों जलाता नहीं?
कभी कभी ही खिलती, कली फूल सी बहार बेटी.
घर की आन बान शान, दो कुलों की संस्कार बेटी.
पढ़ना लिखना आगे बढ़ना, है तेरा अधिकार बेटी,
माने बेटी को घर आँगन की दीपमाला,
पर ज्ञान देकर उसे कोई क्यों जलाता नहीं?
गर्भ में मार देते हैं, पाँव जमीन पर भी न पड़ने देते.
अज्ञानता की जंजीर से बाँध, उसे न आगे बढने देते.
बेटे को पढ़ाते हो. पर बेटी को क्यों न आगे पढने देते.
बेटा-बेटी के भेद को मिटाकर,
मधुर समभाव का दीप कोई क्यों जलाता नहीं?
घर में माँ बहन पत्नी चाहिए, ये भी तो एक नारी है.
तो फिर क्यों कहते हो मधुर, बेटी बोझ एक बीमारी है.
ज्ञान का प्रकाश दो बेटी को भी, शिक्षा दनिया सारी है.
आज भी बेटी को चूल्हा चौका में बाँध,
बेटों सा अधिकार कोई क्यों दिलाता नहीं?
रचनाकार- सुन्दर लाल डडसेना
सुनो ध्यान से बेटियाँ
रचनाकार- प्रिया देवांगन
विकसित होता देश है, फिर भी छोटी सोच.
हाथ बढ़ा धन माँगते, करे नहीं संकोच,
इर्द गर्द हैं घूमते, जैसे उड़ते बाज.
रचे स्वांग मानव यहाँ, सर पर पहने ताज.
लालच कितना मन भरा, दौलत रखे अमीर.
नहीं गरीबी देखते, रखे कभी ना धीर.
सुनो ध्यान से बेटियाँ बदल रहा परिवेश.
हो गर अत्याचार तो, दर्ज करो तुम केस.
कलयुग का यह दौर है, सभी चटाओ धूल.
जिनके मन में मैल हो, चुभे उन्हें भी शूल.
कितने राक्षस घूमते, करते माँग दहेज.
तुम कलयुग की बेटियाँ, बनो सूर्य सा तेज.
करे नौकरी बेटियाँ, भरती गगन उड़ान.
हैं लक्ष्मी का रूप वे, उनको दो सम्मान.
स्नेह मिले माँ बाप सा, ऐसी हो ससुराल,
ये बेटी है या बहु, पूछे लोग सवाल.
बेटियां
रचनाकार- श्रीमती प्रियंका श्रीवास
दुनिया की खुशियां,
जादू कि गुड़िया,
दवाई की पुड़िया,
होती है बेटियां.
फूलों की कलियां,
मिश्री की डालियां.
आशा की गलियां,
होती है बेटियां.
रोशन करता है बेटा,
एक ही घर को,
दो -दो घरों की,
लाज रखती है बेटियां.
पापा कि परिया,
मां कि दुनिया,
होती है बेटियां.
दो कुलों का मान होती है वेटियां
रचनाकार- किशन सनमुखदास भावनानी
दो कुलों का मान होती है बेटियां
पूरे घर की जान होती है बेटियां
घर परिवार आबाद करती है बेटियां
थम जाता संसार अगर ना होती बेटियां
घर की जान होती है बेटियां
पिता की आन बान शान होती है बेटियां
बेटों से कम नहीं होती है बेटियां
पिता का गुमान होती है बेटियां
मां बहू भाभी पत्नी बनकर सेवा करती है बेटियां
खुद अपमान सह दूसरों को मान देती है बेटियां
कमियों को भुला जो मिले उसमें खुश है बेटियां
हर हाल में खुश हो मुस्कुराती रहती है बेटियां
अपनी पहचान मिटा दूसरों की पहचान अपनाती है बेटियां
बहु बन सास ससुर की सेवा करती है बेटियां
सुनो जग वालो धन मन हृदय सब कुछ है बेटियां
लक्ष्मी सरस्वती पार्वती का रूप है बेटियां